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उर अवा अनल में आँच दिया
उर अवा अनल में आँच दिया तुझ बिरह संग से पीसा है।भरि ख़ून जिगर को अय जालिम गुलज़ार रंग दुति दीसा है॥
शीतल
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काँटेदार झाड़ी पर बर्फ़
जिगर में ऐंठन, रोम-रोम बौखलाया हुआ।खिड़की से दुनिया को एक नज़र देखा,
रहमान राही
यह वह बनारस नहीं गिंसबर्ग
देख रही बिकती बोटियाँ जिगर कींछह दो सात पाँच बोली न्यूयॉर्क-टोक्यो की
लाल्टू
माँ का अछोर आँचल
आँखें बिछी रहती हैं उसकी लगातारअपने जिगर के टुकड़े द्वारा तय की राहों में
मुसाफ़िर बैठा
मानव चेहरों के सौंदर्य पर
कुछ चेहरे लगते हैं मरियल झोंपड़ियों-से,पकता हो जिगर जहाँ सीलता हो औ' कवाब।
निकोलाय ज़बोलोत्स्की
आज़ाद हिंद फ़ौज का कड़खा
उठता जिगर से फ़िलअए-दिल्ली के है धुवाँ,क़ुरबान तुम पै हिंद के लाखों हैं नौजवाँ;
गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
ब्रजी लोकगीत : मोड नागिन बनि के डसि गई
मेरे लागी करेजा में तीर, जिगर में चुभि गई बांसुरिया।रिमझिम-रिमझिम मेहा बरसे, चमके बीजुरिया।
रससिद्ध कवीश्वर:सनेही जी
दिल बला का, तो क़यामत का जिगर रखते थे।कोई शमशेरी-क़लम में न था सानी अपना,
अमृतलाल नागर
पैसे के बारे में एक महत्वाकांक्षी कविता के लिए नोट्स
तब तो जिगर को मुट्ठी में कसकर सोचा,कि शुरू से ही पैसा कमाने में लग जाते