भादुइ भरम भुलाणीआ

bhadui bharam bhulania

गुरु अर्जुनदेव

गुरु अर्जुनदेव

भादुइ भरम भुलाणीआ

गुरु अर्जुनदेव

और अधिकगुरु अर्जुनदेव

    भादुइ भरम भुलाणीआ दूजै लगा हेत॥

    लख सीगार बणाइआ कारज नाही केत।

    जित दिन देह बिनससी तित वेलै कहसन प्रेत॥

    पकड़ चलाइन दूत जम किसै देनी भेत।

    छड खड़ोते खिनै माहे जिन सिउ लगा हेत॥

    हथ मरोड़ै तन कपे सिआहहो होआ सेत।

    जेहा बीजै सो लुणै करमा संदड़ा खेत॥

    नानक प्रभ सरणागती चरण बोहिथ प्रभ देत।

    से भादुइ नरक पाईअह गुर रखण वाला हेत॥

    जो आत्माएँ भ्रमवश परमात्मा को छोड़कर किसी और से प्रेम करती हैं, उन्होंने चाहे कितने ही शुभ कर्मरूपी शृंगार किए हों, उन्हें सफलता प्राप्त नहीं होती। जिस दिन शरीर का अंत हो जाएगा, सब लोग उसको प्रेत कहेंगे। धर्मराज के दूत उसे पकड़कर ले जाएँगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा कि वे उसे किधर ले गए हैं। जिनसे उसका मोह और प्यार रहा, वे क्षण भर में उससे संबंध तोड़ लेते हैं। मौत के समय जीव अपना जीवन व्यर्थ गँवा देने के कारण हाथ मलता रह जाता है। दुर्दशा के भय से उसकी देह में कँपकँपी होने लगती है और चेहरे का रंग सफ़ेद पड़ जाता है। उस समय उसका कोई बस नहीं चलता, कर्मों की जो फ़सल उसने जीवन में बोई है, मौत के बाद वही उसे काटने को मिलती है। गुरु साहिब बताते हैं कि जो कोई प्रभु की शरण में जाता है, वह भवसागर से पार हो जाता है। जिनका रक्षक प्रेमस्वरूप गुरु हो, उन जीवों को नरकों में नहीं जाना पड़ता। उन्हें हमेशा गुरु का संरक्षण प्राप्त होता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुरु अर्जुन देव (पृष्ठ 237)
    • संपादक : महिंदर सिंह जोशी
    • रचनाकार : गुरु अर्जुनदेव
    • प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास
    • संस्करण : 2012

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