हउमै नावै नालि विरोधु है

ha.umai naavai naali virodhu hai

गुरु अमरदास

गुरु अमरदास

हउमै नावै नालि विरोधु है

गुरु अमरदास

और अधिकगुरु अमरदास

    हउमै नावै नालि विरोधु है, दुइ बसहि इकठाइ।

    हउमै बिचि सेवा होवई, तामनु बिरथा जाइ॥

    हरि चेति मन मेरे तू गुर कै सबदु कमाइ।

    हुकमि मंनहि ता हरि मिलै, ता बिचहु उहमै जाइ॥रहाउ॥

    हउमै सभु सरीरु है, हउमै उतपति होइ।

    हउमै बड़ा गुवारु है, उहमै बिचि बूझि सकै कोइ॥

    हउमै बिचि भगति होवई, हुकमु बूझिआ जाइ।

    हउमै बिचि जीउ बंधु है, नामु बसै मनि आइ॥

    नानक सतगुरि मिलिऐ हउमै गई, ता सचु बसिआ मनि आइ।

    सचु कमावै सचि रहै, सचे सेवि समाइ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत काव्य-धारा (पृष्ठ 158)
    • संपादक : परशुराम चतुर्वेदी
    • रचनाकार : अमरदास
    • प्रकाशन : किताब महल, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1981

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