अमलु करि धरती बीजु सबद करि

amlu kari dhartii biiju sabad kari

गुरु नानक

गुरु नानक

अमलु करि धरती बीजु सबद करि

गुरु नानक

और अधिकगुरु नानक

    अमलु करि धरती बीजु सबद करि सच की आब नित देहि पाणी।

    होइ किरसाणु ईमानु जंमाइ लै भिसतु दोजकु मूड़े एव जाणी॥

    मतु जाण सहि गली पाइआ।

    माल कै भाणै रूप की सोभा इतु बिधी जनमु गवाइआ॥ ॥रहाउ॥

    ऐब तनि चिकड़ो इहु मनु मीडको कमल की सार नही मूलि पाई।

    भउरु उसतादु नित भाखिआ बोले किउ बूझै जानह बुझाई॥

    आखणु सुनणा पउण की बाणी इहु मनु रता माइआ।

    खसम की नदरि दिलहि पसिंदे जिनी करि एकु धिआइआ॥

    तीह करि रखे पंज करि साथी नाउ सैतानु मतु कटि जाई।

    नानकु आखै राहि पै चलणा मालु धनु कितकु संजिआही॥

    हे प्राणी, शुभ कर्मों को धरती तथा (परमात्मा के) नाम को बीज बनाओ; सत्य की कीर्ति जल से (उस पृथ्वी को) नित्य सीचो। (इस प्रकार के) बिसान बन कर ईमान (विश्वास) को अंकुरित करो। हे मूर्ख विहिश्त (स्वर्ग) और दोखज (नरक) को इस प्रकार समझो।

    यह मत समझो कि (स्वर्ग की प्राप्ति केवल) बाता से हो जाएगी। ऐश्वर्य तथा रूप-सौंदर्य के अभिमान में इसी प्रकार (अमूल्य) जीवन नष्ट कर जाता है।

    शरीर में (स्थित) अवगुण ही कीचड़ है, यह मन मेढक है, जिसे पास ही स्थित कमल (सर्वव्यापक परमात्मा) का तनिक भी पता नहीं है। गुरु भ्रमर है, (जो) नित्य उपदेश देता रहता है, किंतु यदि (गुरु का उपदेश) नहीं समझ में आता, तो (उस कमल को किस प्रकार जाना जाय?

    (चूँकि) यह मन माया में लगा हुआ है, (अतएव उसके लिये) कहना और सुनना वायु की ध्वनि की (तरह व्यर्थ है)। जो परमात्मा का एकनिष्ठ होकर ध्यान करते है, उन्हीं के ऊपर पति (प्रभु) की कृपा होती है और वे ही उसे हृदय में प्रिय होते हैं।

    (तुम) तीस रोजे रक्खो, पाँच नमाजो की साथी बना कर पढ़ो, (पर इतना स्मरण रक्खो कि) जिसका नाम शैतान है, (वह तुम्हारे सारे शुभ कर्मों के प्रभाव को) कही काट दे। (भाव यह कि जब तक आंतरिक बुराई नहीं छूटेगी, तब रोजा, नमाज़ से कुछ लाभ होगा)। नानक कहते है कि ( अंत में तुम्हें मृत्यु के) मार्ग पर ही चलना है, फिर धन-दौलत का क्यों संग्रह कर रहे हो?

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुरु नानकदेव वाणी और विचार (पृष्ठ 159)
    • संपादक : रमेशचंद्र मिश्र
    • रचनाकार : गुरु नानक
    • प्रकाशन : संत साहित्य संस्थान
    • संस्करण : 2003

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