ऐसी मेरी जाति बिख्यात चमारं
aisi meri jati bikhyat chamaran
ऐसी मेरी जाति बिख्यात चमारं, हिरदै राम गोब्यंद गुण सारं॥टेक॥
सुरसी जल लीया क्रित बारुनी रे, जिसे संत जन कर नहीं पान।
सुरा अपवित्र निति गंगा जल मानीऐ, सुरसरी मिलत नहीं होत आन॥
तर तारि अपवित्र करि मानिऐ, जैसे कागरा करत विचारं।
भगत भगवंत जब ऊपरै लेखीए, तब पूजीऐ करि नमस्कारं॥
अनेक अधम जीव नावं गुनि ऊधरि, पतित पावल भए परसि सारं।
भणत रैदास ररंकार गुण गावंत, संत साधु भऐ सहजि पारं॥
मेरी जाति लोक-प्रसिद्ध चमार जाति है किंतु मेरे हृदय में गोविंद के गुणों का सार भरा हुआ है। गंगाजल से बनी शराब भी संतजन पान नहीं करते किंतु अपवित्र शराब पवित्र गंगा में मिलकर गंगा तुल्य हो जाती है। ताड़ी का वृक्ष अपवित्र माना जाता है किंतु जब उसकी छालपर भक्ति सम्मत बातें लिखी जाती है तो वह पूजनीय हो जाता है और लोग उसे नमस्कार करते हैं। हे ईश्वर! तुम्हारे नाम का स्मरण करके अनेक अधम प्राणियों का उद्धार हो गया। पतित भी तुम्हारे नाम का स्पर्श करके पावन हो गए। रैदास कहते हैं कि राम−नाम की ध्वनि का गुणगान करते हुए साधु−संत सहज ही पार हो गए।
- पुस्तक : रैदास ग्रंथावली (पृष्ठ 203)
- रचनाकार : जगदीश शरण
- प्रकाशन : साहित्य संस्थान
- संस्करण : 2011
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