श्री नेमिनाथ रास (धूवउ ३)

shri neminath ras (dhuwau ३)

सुमति गणि

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श्री नेमिनाथ रास (धूवउ ३)

सुमति गणि

और अधिकसुमति गणि

    तहिं अइ पंडुकं बल सिल उप्परिं, चउसट्ठिवि हरिगिरि जिणवरु धरि।

    भूरि भत्ति भर निब्भर भाविण, पक्खालहिं पहु सहुनिय पाविण॥१८॥

    मुवसम कुसुम माल समलंकिंउ, वर विलेव कलियउ अकलंकिउ।

    कप्पदुम्भु विहिक संकप्पि उ, देवि दिणजिणु जणणि समप्पिउ॥१९॥

    गब्भत्थह जणणीए मणि रिट्ठह नेमि।

    दिट्ठउ किउ नामु जिणवरु रिट्ठनेमि॥२०॥

    सो सोहाग निहाणु जिणेसरु रुवरेह जिय मयण मुणीसरु।

    सुरगिरि कंदरि चयउ जेम्व वद्धह नेमि सुहंसुही तेम्ब॥२१॥

    तहिं जिकालि राया जरसिंधु, तमु भय जायव गय सवि सिन्धु।

    बारवई धण कणिहिं समिद्धि, कण्ह पुन्नि देविहिं करि रिद्धि॥२२॥

    तहिं वसंति जायव कुल कोड़िहिं हसहिं रमहिं कीलहिं चड़ि घोडिहिं।

    सग्गपुरी इन्दुव सव कालु, गयउ जाणइ कितिउ कालू॥२३॥

    नेमिकुमरु अन दियहिं रमंतउ, गउहरि आउह साल भमंतउ।

    संखु लेवि लीलइ बाएई, संख सद्दि तिहुयण खोमेई॥२४॥

    तंसुणि पभणइ कण्हो किण वायउ संखु।

    भणिउ जणेण नरिंदो जिण बलुज असंखु॥२५॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 50)
    • संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
    • रचनाकार : सुमति गणि
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
    • संस्करण : 1976

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