फ्रांत्स काफ़्का के उद्धरण

यह जीवन असह्य है और दूसरा अप्राप्य। लोग मरने की इच्छा रखने पर अब शर्मिंदा नहीं होते, लोग इस क़ैद में, जिसे वे पसंद नहीं करते, से निकलकर दूसरी क़ैद में चले जाना चाहते हैं, जिसे आगे चलकर वे पुनः नापसंद करने लगेंगे। इन सबके बीच इस आस्था के शेष भी हैं कि कहीं तो मालिक आएगा, कॉरिडोर में पंक्तिबद्ध क़ैदियों को देखेगा और एक क़ैदी की ओर इशारा करके कहेगा : ‘‘इसे अब क़ैद में मत डालो, इसे मेरे पास भेज दो।’’
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