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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

वीणा में एक ही तार नहीं है—लाखों तार हैं, लाखों सुर हैं लेकिन विभिन्न तारों में विरोध नहीं है।

अनुवाद : विश्वनाथ नरवणे