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आदि शंकराचार्य के उद्धरण

विद्वान् को बंधन दूर करने के लिए आत्मा और अनात्मा का विवेक करना चाहिए। उसी से स्वयं को सत्-चित्-आनंद-स्वरूप जानकर वह आनंदित हो जाता है।