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आचार्य रामचंद्र शुक्ल के उद्धरण

विदेशी कच्चा रंग एक चढ़ा, एक छूटा, पर भीतर जो पक्का रंग था, वह बना रहा। हमने चौड़ी मोहरी का पायजामा पहना, आदाब अर्ज किया, पर 'राम-राम' न छोड़ा। अब कोट-पतलून पहनकर बाहर 'डैम नान्सेंस' कहते हैं, पर घर में आते ही फिर वही 'राम-राम'।