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महात्मा गांधी के उद्धरण

वास्तव में जीवन के सुखपूर्वक निर्वाह के लिए अन्य इंद्रियों का थोड़ा-सा भी भोग आवश्यक होता है, पर ब्रह्मचर्य से जीवन-निर्वाह अशक्य नहीं होता—उलटा अधिक अच्छी तरह से और तेजस्वी होता है।