राधावल्लभ त्रिपाठी के उद्धरण
वाल्मीकि में आ कर बूंद अपनी लघुता में भी विराट सागर को समा लेती है, मनुष्य अपनी क्षुद्रता में सारे ब्राह्माँड को समेट लेता है।
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