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वासुदेवशरण अग्रवाल के उद्धरण

वाल्मीकि के मत से चरित्रवान् पुरुष वह है, जिसमें शारीरिक विकास और नैतिक विकास—रथ के दो पहियों की तरह साथ-साथ चलते हैं।