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राजेंद्र माथुर के उद्धरण

स्मरण और विस्मरण की एक शैली हमारे पास हज़ारों वर्ष से है और यह मानने का कोई कारण नहीं कि आज बीसवीं सदी में वह हमारे साथ नहीं है। इसलिए आज जो शोधकर्ता गाँव में जाकर भारत के लोकगीतों को भविष्य के लिए लिपिबद्ध अथवा टेपबद्ध करना चाहता है, वह मूलतः एक अभारतीय कर्म कर रहा है। कहने को वह कहेगा कि मैं जड़ों से जुड़ रहा हूँ, इत्यादि, लेकिन जड़ों से जुड़ने की यह अवधारणा ही पश्चिमी है।