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महात्मा गांधी के उद्धरण

सारा संसार रज-कणों को कुचलता है; पर सत्य का पुजारी तो जब तक इतना अल्प नहीं बनता कि रज-कण भी उसे कुचल सके, तब तक उसके लिए स्वतंत्र सत्य की झाँकी भी दुर्लभ है।

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