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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

संसार प्रायः दो विरोधी स्वभाव की शक्तियों, वस्तुओं या चेष्टाओं का समझौता ही है।

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार