समाज में मान-सम्मान पाने के लिए गुण ही ज़्यादा प्रभावी सिद्ध होते हैं, जाति नहीं। हर बात में जाति का अड़ंगा डालने की बहुत बुरी आदत हमें पड़ गई है। आज जो हैं, वे ही जातियाँ काफ़ी हैं। अब कम-से-कम राजनीति में तो हम जातियाँ पैदा न करें। आने वाले जमाने का शिवाजी यदि मुसलमान के घर में पैदा होता है तो मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगेगा। हमें गुणों की चाह है, जाति की नहीं।