शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उद्धरण

समाज में जिसे गौरव प्रदान नहीं किया जा सकता, उसे केवल प्रेम के द्वारा सुखी नहीं किया जा सकता। मर्यादाहीन प्रेम का भार शिथिल होते ही दुस्सह हो जाता है।
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