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श्यामसुंदर दास के उद्धरण

साहित्य और सुरुचि का अभेद्य संबंध है और साहित्य को हमारी उस रुचि को तृप्त करने में समर्थ होना चाहिए, जिसे हम अपने या किसी दूसरे के सामने प्रकट करने में लज्जित न हों।