रवींद्रनाथ एक सम्भ्रांत कलाकार थे, जो आम लोगों से सहानुभूति रखने की वजह से लोकतंत्रवादी हो गए थे। वह ख़ासतौर से हिंदुस्तान की सांस्कृतिक परंपरा के नुमाइंदे थे—उस परंपरा के, जो ज़िंदगी को उसके पूरे रूप में अंगीकार करती है, और जिसमें नृत्य-संगीत के लिए जगह है।