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श्रीलाल शुक्ल के उद्धरण

रंगनाथ का रवैया उन टूरिस्टों का-सा हो गया था जो सड़कें, हवा इमारतें, पानी, धूप, देश-प्रेम, पेड़-पौधे, कमीनापन, शराब, कर्मनिष्ठा, लड़कियाँ और विश्वविद्यालय आदि वस्तुएँ अपने देश में नहीं पहचान पाते और उन्हें विदेशों में जाने पर ही देख पाते हैं।