रामकृष्ण परमहंस ने भिन्न-भिन्न धर्मों की साधना स्वयं करके, सब धर्मों की एकरूपता प्रत्यक्ष कर ली। तुकराम ने अपनी उपासना के सिवा दूसरे किसी की भी उपासना न करते हुए भी, सारी उपासनाओं का सार जान लिया। जो स्वधर्म का निष्ठा से आचरण करेगा, उसे स्वभावतः ही दूसरे धर्मों के लिए आदर रहेगा।