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आचार्य रामचंद्र शुक्ल के उद्धरण

राजधर्म, आचार्यधर्म, वीरधर्म सब पर सोने का पानी फिर गया, सब टकाधर्म हो गए। धन की पैठ मनुष्य के सब कार्य क्षेत्रों में करा देने से, उसके प्रभाव को इतना विस्तृत कर देने से, ब्राह्मण-धर्म और क्षात्रधर्म का लोप हो गया; केवल वणिग्धर्म रह गया।