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वेदव्यास के उद्धरण

राजन्! जो आसक्ति रहित होकर आसक्त की भाँति विचरता है, जो संगरहित है एवं सब प्रकार के बंधनों को तोड़ चुका है तथा शत्रु और मित्र में जिसका समान भाव है, वह सदा मुक्त ही है।