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श्रीनरेश मेहता के उद्धरण

रचना का बड़प्पन उनके स्वत्व के बौनेपन के लिए चुनौती होता है, इसलिए जब भी उन्हें ऐसा कुछ दिखता-मिलता है; वे असुविधा अनुभव करते हैं।