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रघुवीर चौधरी के उद्धरण

पूर्वकल्पित धारणाओं से किसी को समझना सही नहीं है। सच्ची पहचान उसके आचरण से ही मिल सकती है। लेकिन व्यवहार प्रासंगिक है। क्या यह व्यक्तित्व के सुसंगत पहलुओं का परिचय दे सकता है? अन्यथा व्यवहार भी भ्रामक है। धारणा भी भ्रामक है। अनुभव भी भ्रामक है… तो सच क्या है? लेकिन सत्य भी धारणा ही है, है ना? बिना धारणा के मैं दौड़ नहीं सकता।

अनुवाद : भाग्यश्री वाघेला