आचार्य रामचंद्र शुक्ल के उद्धरण

प्रेम वास्तव में राग का ही पूर्ण विकसित रूप है। वासनात्मक अवस्था से भावात्मक अवस्था में आया हुआ राग ही अनुराग या प्रेम है।
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