प्राण स्वयं आपके अपने हैं। यदि आप चाहें तो अपने प्राण दे सकते हैं, लेकिन आपकी जो यह धारणा है कि स्त्री आपकी संपत्ति है, आप उसके स्वामी होने के कारण इच्छा होने पर अथवा आवश्यकता समझने पर उसके नारी धर्म पर भी अत्याचार कर सकते हैं, उसे जीती भी रख सकते हैं और मार भी सकते हैं और उसे वितरित भी कर सकते हैं, तो यह आपका अनधिकार है।