सुमित्रानंदन पंत के उद्धरण

प्रकृति से मेरा क्या अभिप्राय है, शायद इसे मैं न समझा सकूँगा। अगर किसी वस्तु को बिना सोचे-विचारे, केवल उसका मुख देखकर, मेरे मन ने स्वीकार किया है, तो वह प्रकृति है।
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