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संत तुकाराम के उद्धरण

पत्थर की प्रभु-मूर्ति भी है और पत्थर की सीढ़ी भी है। एक की पूजा करते हैं, दूसरे पर पैर रखते हैं। सार वस्तु है भाव। यही अनुभव में भगवान होकर प्रकट होता है।