Font by Mehr Nastaliq Web

रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

प्रकाश और जिसका प्रकाश, इन दोनों में ही एक प्रतिकूलता रहती है, उस प्रतिकूलता के सामंजस्य द्वारा ही दोनों सार्थकता प्राप्त करते हैं। वास्तव में दो विरोधों के मिलाप के बिना प्रकाश हो ही नहीं सकता है।

अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी