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महात्मा गांधी के उद्धरण

नम्रता अभ्यास से नहीं प्राप्त की जा सकती, बल्कि अनेक सद्गुणों और विचारमय जीवन के परिणामस्वरूप स्वभाव में अपने-आप प्रकट होती है। नम्र मनुष्य को अपनी नम्रता का भान तक नहीं होता।