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श्रीनरेश मेहता के उद्धरण

एक दिन जब मूल-बीज निष्क्रिय हो जाता है; तब ऐसी वृत्तहीनता आ जाती है कि न शब्द रहता है, न ज्योति; न प्रतीति रहती है, न प्रक्रिया।