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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

मृत्यु का अतिक्रमण करने की व्यर्थ चेष्टा जीवन नहीं करता, मृत्यु भी दुश्मन की तरह हमला करके जीवन को परास्त नहीं करती।

अनुवाद : विश्वनाथ नरवणे