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हजारीप्रसाद द्विवेदी के उद्धरण

मेरी दृष्टि में साहित्य की मौलिकता का प्रतिमान यही समाज की मंगलदृष्टि से अनुप्राणित, परंपरा प्राप्त, शात्र दृष्टि से सुसंस्कृत और लोकचित्त में सहज ही सुचिंत तत्त्वों को सरस रूप में प्रतिफलित करने में समर्थ व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है। यह व्यक्तित्व जितना उज्ज्वल और शक्तिशाली होगा, साहित्य की मौलिकता उतनी उज्ज्वल और दृप्त होगी।