जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

मेघ के समान मुक्त वर्षा-सा जीवन दान, सूर्य के समान अबाध आलोक विकीर्ण करना, सागर के समान कामना—नदियों को पचाते हुए सीमा के बाहर न जाना, यही तो ब्राह्मण का आदर्श है।
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