बाल गंगाधर तिलक के उद्धरण

मैं न्याय माँग रहा हूँ, दया की भीख नहीं। जूरी में से एक भी व्यक्ति यदि यह राय दे देता है कि राजद्रोह के अभियोग से मैं पूर्णरूपेण निर्दोष हूँ, और मैंने जो कुछ भी क्रिया ठीक किया, तो मैं संतोष कर लूँगा।
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