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श्रीलाल शुक्ल के उद्धरण

लगभग सभी किसी-न-किसी तकलीफ़ में थे और कोई भी तकलीफ़ की जड़ में नहीं जाता था। तकलीफ़ का जो भी ताल्कालिक कारण हाथ लगे, उसे पकड़कर भुनभुनाना शुरू कर देता था।