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रघुवीर चौधरी के उद्धरण

कुछ भी इतना मधुर नहीं होना चाहिए कि सुनते ही नींद आ जाए और इतना प्रेरक भी नहीं कि समझने पर वैराग्य आ जाए।

अनुवाद : भाग्यश्री वाघेला