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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

कोहबर में दूल्हे और पाठकों की सभा में लेखक की प्रायः एक ही दशा है। दोनों ही के कान में बहुत-सी गालियाँ और दिल्लगी की आवाज़ें पड़ती हैं, जो कि उन्हें चुपचाप सहनी पड़ती हैं।

अनुवाद : अमृत राय