केदारनाथ सिंह के उद्धरण

किसी भी भारतीय भाषा में छंद को इस तरह नहीं छोड़ा गया है जिस तरह हिंदी कविता में छोड़ा गया है। मुझे लगता है, नई शताब्दी में प्रवेश करते हुए कविता को जिन मूलभूत समस्याओं से दो-चार होना पड़ेगा, उनमें यह छंद की समस्या भी एक है।
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