शंकर शैलेंद्र के उद्धरण

ख़ेद है कि न तो मेरे पास आशा है, न स्वास्थ्य, न आंतरिक शांति, न बाह्य शांति और न ही सब धनों से श्रेष्ठ संतोष, जो कि संत ध्यान में पा लेता है और आंतरिक गौरव का मुकुट धारे भ्रमण करता है।
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