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केदारनाथ सिंह के उद्धरण

कविता यथार्थ के बिना जीवित नहीं रह सकती और दूसरी ओर यथार्थवाद के अलावा वह एक ख़ास तरह की विचार-परंपरा से भी जुड़ी होती है।