केदारनाथ सिंह के उद्धरण

कविता चली जाती है या चली जाएगी, यह सोचना ही ग़लत है। कविता रहती है और वह लगभग पत्थर पर उगने वाली घास की तरह होती है जो पत्थर को तोड़कर भी उग आती है, इसलिए वह रहेगी ही।
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