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गंगानाथ झा के उद्धरण

कवि को स्मितपूर्वाभिभाषी होना चाहिए—जब बोले हँसता हुआ बोले। बातें गंभीर अर्थ वाली कहे। सर्वत्र रहस्य, असल तत्त्व का अन्वेषण करता रहे। दूसरा कवि जब तक अपना काव्य न सुनावे, तब तक उसमें दोषोद्भावन न करे—सुनाने पर जो यथार्थ हो सो कह देवे।

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