लक्ष्मीनारायण मिश्र के उद्धरण

कवि व्यक्ति नहीं, विधाता है और उसका धर्म जीवधर्म का साक्षात्कार तथा सृष्टि-दर्शन है। और यही धर्म भारतीय साहित्य, संगीत, चित्र और मूर्ति-निर्माण में सब कहीं बिना किसी प्रकार के श्रम के देखा जा सकता है। कवि ने अपने कवि-कर्म का नाम 'रामायण' रखा पर 'राम' नहीं। व्यक्ति के नाम पर साहित्यित कृतियों का नामकरण नहीं हुआ।
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