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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

कर्म—विशेषतः मंगल-कर्म—तभी सहज और सुख-साध्य होता है; जब प्रवृत्ति को संयम के साथ चलाने की शिक्षा हो, साधना हो।

अनुवाद : विश्वनाथ नरवणे