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अश्वघोष के उद्धरण

कामभोगों से कभी तृप्ति नहीं होती, जैसे जलती अग्नि की आहुतियों से तृप्ति नहीं होती। जैसे-जैसे कामसुखों में प्रवृत्ति होती जाती है, वैसे-वैसे विषय-भोगों की इच्छा बढ़ती जाती है।

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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