कल्पना और काल्पनिकता—दोनों में बड़ा अंतर है। सच्ची कल्पना युक्ति, संयम और सत्य के द्वारा सुनिर्दिष्ट आकार में बँधी होती है, काल्पनिकता में सत्य का आभास-मात्र होता है। लेकिन वह अद्भुत अतिरंजना से असंहत रूप में फूली हुई होती है, उसमें जो थोड़ा-बहुत प्रकाश होता है—उससे सौ गुना ज़्यादा धुआँ होता है।