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वेदव्यास के उद्धरण

जो वस्तु भविष्य में मिलने वाली है, उसे यही माने कि 'वह मेरी नहीं है' तथा जो मिलकर नष्ट हो चुकी हो, उसके विषय में भी यही भाव रखे कि 'वह मेरी नहीं थी'। जो ऐसा मानते हैं कि 'प्रारब्ध ही सबसे प्रबल है', वे ही विद्वान् हैं और उन्हें सत्पुरुषों का आश्रय कहा गया है।